परिचय
“झपाटलेला” 1993 में रिलीज़ हुई एक मराठी हॉरर-कॉमेडी फिल्म है, जिसका निर्देशन महेश कोठारे ने किया था। यह फिल्म हॉलीवुड की “चाइल्ड्स प्ले” से प्रेरित मानी जाती है और मराठी सिनेमा में कल्ट क्लासिक बन चुकी है। हॉरर, सस्पेंस और कॉमेडी के बेहतरीन मेल के कारण यह फिल्म दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय रही।
कहानी का सार
फिल्म की कहानी एक कुख्यात गैंगस्टर टाट्या विनचू के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे पुलिस एनकाउंटर में मार देती है। लेकिन मरने से पहले, वह काले जादू की मदद से अपनी आत्मा एक गुड़िया में ट्रांसफर कर देता है। यह गुड़िया गलती से लक्ष्या नामक एक साधारण वेंट्रिलोक्विस्ट (पेट से बोलने वाला कलाकार) के पास पहुँच जाती है।
लक्ष्या को जल्द ही अहसास होता है कि यह गुड़िया जीवित और खतरनाक है। टाट्या विनचू अब एक नए इंसानी शरीर की तलाश में है ताकि वह फिर से जिंदा हो सके। लक्ष्या और पुलिस इंस्पेक्टर महेश जाधव की कोशिश होती है कि वे इस डरावनी गुड़िया को रोक सकें। कहानी रोमांचक और मज़ेदार मोड़ से भरपूर है, जिसमें हॉरर और कॉमेडी का जबरदस्त तालमेल देखने को मिलता है।
मुख्य कलाकार
- लक्ष्मीकांत बेर्डे – लक्ष्या (मुख्य नायक, वेंट्रिलोक्विस्ट)
- महेश कोठारे – इंस्पेक्टर महेश जाधव
- दिलीप प्रभावळकर – टाट्या विनचू (मानव और गुड़िया की आवाज़)
- मधु कांबिकर – लक्ष्या की माँ
- राघवेंद्र कदम – डॉ. सालसकर
फिल्म की लोकप्रियता और प्रभाव
“झपाटलेला” मराठी फिल्म इंडस्ट्री में हॉरर-कॉमेडी शैली की सबसे सफल फिल्मों में से एक रही। टाट्या विनचू का किरदार, उसकी डरावनी आवाज़ और उसके संवाद जैसे “मी पुन्हा येईन” (मैं फिर आऊँगा) आज भी लोगों को याद हैं।
इस फिल्म की भारी सफलता के कारण 2013 में “झपाटलेला 2” बनाई गई, जो महाराष्ट्र की पहली 3D फिल्म थी।
निष्कर्ष
“झपाटलेला” सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि मराठी सिनेमा के लिए एक ऐतिहासिक फिल्म बन चुकी है। इसके हॉरर और कॉमेडी के मिश्रण ने इसे दर्शकों के दिलों में हमेशा के लिए बसा दिया है। यह फिल्म आज भी टीवी और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर देखी जाती है और नई पीढ़ी के दर्शकों को भी पसंद आती है।
अगर आप हॉरर-कॉमेडी के शौकीन हैं, तो “झपाटलेला” जरूर देखें!
“दुनियादारी” – एक अविस्मरणीय मराठी फिल्म
परिचय
“दुनियादारी” मराठी सिनेमा की उन गिनी-चुनी फिल्मों में से एक है, जिसने न केवल बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त सफलता हासिल की बल्कि दर्शकों के दिलों में भी गहरी छाप छोड़ी। यह फिल्म 2013 में रिलीज़ हुई थी और इसका निर्देशन संजय जाधव ने किया था। यह मराठी के प्रसिद्ध लेखक सुहास शिरवलकर के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है, जो मराठी साहित्य में एक क्लासिक कृति मानी जाती है।
यह फिल्म कॉलेज लाइफ, दोस्ती, प्रेम, पारिवारिक संबंधों और जीवन के संघर्षों को बड़े ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत करती है। 1970 के दशक के पुणे की पृष्ठभूमि में सेट की गई यह कहानी युवाओं के मन को छू जाने वाली है और हर दर्शक इससे खुद को जोड़ सकता है।

कहानी का सार
फिल्म की कहानी श्रेयस तलपड़े उर्फ सवाई (स्वप्नील जोशी) के इर्द-गिर्द घूमती है। सवाई की माँ (सुहास जोशी) उसे डॉक्टर बनाना चाहती है, लेकिन वह अपने जीवन का असली उद्देश्य खोजने के लिए एक अलग राह चुनता है। वह पुणे के प्रतिष्ठित फर्ग्यूसन कॉलेज में दाखिला लेता है और यहीं से उसकी दुनियादारी शुरू होती है।
कॉलेज में उसकी मुलाकात होती है डीग्या (जितेंद्र जोशी) और शांतनु (सिद्धार्थ चांदेकर) से, जो उसके करीबी दोस्त बन जाते हैं। डीग्या एक दबंग लेकिन दिल का साफ इंसान है, जबकि शांतनु एक शर्मीला और बुद्धिमान युवक है। इनकी दोस्ती में हंसी-मजाक, झगड़े, शराबखोरी, और जीवन के अलग-अलग अनुभव शामिल होते हैं।
श्रेयस की मुलाकात शिरीन (साई ताम्हणकर) से होती है, जो कॉलेज की सबसे सुंदर और समझदार लड़की होती है। धीरे-धीरे दोनों के बीच प्रेम पनपता है, लेकिन शिरीन का एक दर्दनाक अतीत है, जो उनकी प्रेम कहानी को मुश्किलों में डाल देता है।
इसके अलावा, कहानी में एक और महत्वपूर्ण किरदार है मीना (अंजली पाटील), जो श्रेयस से एकतरफा प्यार करती है। मीना एक भावुक लड़की है, जो श्रेयस को पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। उसकी कहानी दर्शकों के दिल को छू लेने वाली है।
जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, कॉलेज लाइफ के मज़ेदार लम्हों के साथ-साथ जीवन के गहरे सत्य भी सामने आते हैं। प्यार, दोस्ती, धोखा, अपराध, और पारिवारिक रिश्तों का तानाबाना इस फिल्म को बेहद खास बनाता है।
मुख्य पात्र और कलाकार
- स्वप्नील जोशी – श्रेयस तलपड़े (सवाई)
- साई ताम्हणकर – शिरीन
- अंजली पाटील – मीना
- जितेंद्र जोशी – डीग्या
- सिद्धार्थ चांदेकर – शांतनु
- सत्यजीत पटवर्धन – पिंट्या
- उर्मिला कानेटकर – माधुरी
- सुहास जोशी – श्रेयस की माँ (माई)
फिल्म की खास बातें
1. दोस्ती की सच्ची परिभाषा
“दुनियादारी” दोस्ती के सही मायने सिखाने वाली फिल्म है। डीग्या और शांतनु की दोस्ती, श्रेयस के प्रति उनका समर्पण और कॉलेज के अन्य दोस्तों के बीच के संबंधों को इतनी खूबसूरती से दिखाया गया है कि यह हर दर्शक को अपनी खुद की कॉलेज लाइफ की याद दिला देती है।
2. प्यार और उसके संघर्ष
शिरीन और श्रेयस की प्रेम कहानी एक आम प्रेम कहानी से अलग है। यह केवल रोमांस तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें समाज, परंपराओं और व्यक्तिगत संघर्षों की गहराई भी दिखती है। इसके अलावा, मीना का एकतरफा प्यार भी फिल्म में एक महत्वपूर्ण भावनात्मक मोड़ लाता है।
3. 1970 के दशक का वातावरण
फिल्म का सबसे खूबसूरत पहलू है 1970 के दशक की पुणे की झलक। कॉलेज के पुराने कैफे, रोडसाइड चाय की टपरी, विंटेज गाड़ियाँ, फैशन, और संगीत – यह सब फिल्म को एक प्रामाणिकता प्रदान करते हैं, जिससे दर्शक उस दौर में खो जाते हैं।
4. दमदार संवाद और शानदार अभिनय
इस फिल्म के संवाद इतने प्रभावशाली हैं कि वे दर्शकों के दिल में बस जाते हैं। जैसे –
“जिंदगी ही दुनियादारी आहे!”
“जेव्हा मित्र सोबत असतात, तेव्हा आयुष्य जगण्यासारखं वाटतं!”
सभी कलाकारों ने अपने किरदारों में जान डाल दी है। विशेष रूप से जितेंद्र जोशी ने डीग्या के रूप में एक अविस्मरणीय प्रदर्शन दिया है।
5. संगीत जो दिल छू जाए
फिल्म के गाने इसकी आत्मा हैं। “टक धिना धिन”, “आजच्या युवाला”, और “यारा ये यारा” जैसे गाने बेहद लोकप्रिय हुए और आज भी लोगों की प्लेलिस्ट में शामिल हैं।
फिल्म की सफलता और प्रभाव
“दुनियादारी” मराठी सिनेमा की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक रही। इसने न केवल बॉक्स ऑफिस पर शानदार कमाई की, बल्कि मराठी युवाओं के बीच एक नई लहर भी पैदा की। यह फिल्म दोस्ती, प्यार और संघर्ष की कहानी को इतनी सादगी और गहराई से बयां करती है कि हर कोई इससे खुद को जोड़ पाता है।
इस फिल्म की सफलता के बाद, 2017 में इसका एक प्रीक्वल “ये रे ये रे पैसा” भी बनाया गया, लेकिन वह दुनियादारी जैसी सफलता हासिल नहीं कर सका।
निष्कर्ष
“दुनियादारी” सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक भावना है। यह फिल्म हमें सिखाती है कि दोस्ती का महत्व क्या होता है, प्यार में संघर्ष क्यों जरूरी होता है और जिंदगी में दुनियादारी किस तरह से हमें आगे बढ़ने में मदद करती है।
अगर आपने अब तक यह फिल्म नहीं देखी है, तो यह एक बार जरूर देखनी चाहिए। यह फिल्म आपको हंसाएगी, रुलाएगी और आपकी अपनी यादों में खो जाने पर मजबूर कर देगी।
“कारण शेवटी… जिंदगी ही दुनियादारी आहे!”
मुंबई-पुणे-मुंबई” – एक अनोखी प्रेम कहानी
परिचय
“मुंबई-पुणे-मुंबई” 2010 में रिलीज़ हुई एक मराठी रोमांटिक फिल्म है, जिसका निर्देशन सतीश राजवाड़े ने किया है। यह फिल्म अपने अनूठे कथानक और दो मुख्य पात्रों के बीच दिलचस्प बातचीत के लिए जानी जाती है।
इस फिल्म की खासियत यह है कि इसमें सिर्फ दो ही मुख्य किरदार हैं, जो पूरी कहानी को आगे बढ़ाते हैं। हिंदी फिल्मों की टिपिकल प्रेम कहानियों से अलग, यह फिल्म सिर्फ एक दिन की घटना पर आधारित है, जिसमें नायक-नायिका की मुलाकात, बहस, दोस्ती और प्यार को बेहद स्वाभाविक तरीके से दिखाया गया है।
यह फिल्म इतनी लोकप्रिय हुई कि इसका सीक्वल “मुंबई-पुणे-मुंबई 2” (2015) और “मुंबई-पुणे-मुंबई 3” (2018) भी बनाए गए, जो दर्शकों को खूब पसंद आए।
कहानी का सार
कहानी मुंबई की एक आधुनिक लड़की (मुख्य भूमिका में मुक्ता बर्वे) से शुरू होती है, जो अपने लिए एक सही जीवनसाथी चुनने के लिए पुणे जाती है। वह पहले से ही तय कर चुकी होती है कि उसे पुणे का कोई लड़का पसंद नहीं आएगा।
संयोग से, उसकी मुलाकात एक पुणेकर लड़के (स्वप्नील जोशी) से होती है। शुरू में दोनों के बीच नोक-झोंक होती है, क्योंकि मुंबई और पुणे की जीवनशैली और सोच में बड़ा फर्क होता है। लेकिन धीरे-धीरे दोनों के बीच एक अनकही बॉन्डिंग बनने लगती है।
पूरी फिल्म केवल एक दिन की मुलाकात पर आधारित है, जिसमें वे पुणे की गलियों, कटिंग चाय, मिसळ पाव और शहर के माहौल का मज़ा लेते हैं। इसी दौरान, उनके बीच गहरी बातचीत होती है, जिसमें प्यार, रिश्तों और जीवन को लेकर उनकी अलग-अलग सोच सामने आती है।
शुरू में लड़की यह मानकर चलती है कि पुणे का लड़का उसे प्रभावित नहीं कर पाएगा, लेकिन दिन खत्म होते-होते उसकी धारणा बदल जाती है। उसे एहसास होता है कि यह अनजान शख्स, जिससे वह सुबह मिली थी, शायद वही इंसान है जिसके साथ वह पूरी जिंदगी बिता सकती है।
मुख्य पात्र और कलाकार
- मुक्ता बर्वे – मुंबई की लड़की
- स्वप्नील जोशी – पुणे का लड़का
यह फिल्म खास इसलिए भी है क्योंकि इसमें कोई एक्स्ट्रा कैरेक्टर नहीं है। पूरी कहानी सिर्फ इन्हीं दो किरदारों पर केंद्रित है, जो इसे और भी अनोखा बनाता है।
फिल्म की खास बातें
1. मुंबई vs पुणे का दिलचस्प अंतर
फिल्म में मुंबई और पुणे की सोच, रहन-सहन और बोलचाल के अंतर को मज़ेदार तरीके से पेश किया गया है।
मुंबई की लड़की तेज़-तर्रार और खुले विचारों वाली होती है, जबकि पुणे का लड़का शांत, पारंपरिक और सरल जीवन जीने वाला होता है। उनकी बातचीत में कई बार मुंबईकर और पुणेकर के बीच की हंसी-मज़ाक वाली बहस होती है, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया।
2. सिर्फ बातचीत से आगे बढ़ती कहानी
फिल्म की पूरी कहानी सिर्फ संवादों के सहारे आगे बढ़ती है। इसमें कोई ज़रूरत से ज़्यादा ड्रामा, परिवार की दखलअंदाज़ी या अन्य साइड कैरेक्टर्स नहीं हैं।
केवल एक दिन की बातचीत में दो लोग कैसे करीब आ सकते हैं और उनके बीच प्यार कैसे जन्म ले सकता है, इसे बेहद खूबसूरती से दिखाया गया है।
3. प्यार की नई परिभाषा
यह कोई टिपिकल लव स्टोरी नहीं है जहाँ पहली नज़र में प्यार हो जाता है। यहाँ प्यार धीरे-धीरे, एक-दूसरे को समझते हुए और दोस्ती से शुरू होकर आगे बढ़ता है।
4. पुणे की खूबसूरती
फिल्म में पुणे के विभिन्न स्थानों को बड़े ही आकर्षक तरीके से दिखाया गया है –
- शनिवार वाडा
- सरस्वती मंदिर
- काकडे चौक
- लकडी पुल
यह सभी जगहें फिल्म को और भी वास्तविकता देती हैं और दर्शकों को पुणे की सैर करवा देती हैं।
5. दमदार संवाद
इस फिल्म के संवाद बहुत ही प्रभावी और गहरे हैं। कुछ चर्चित संवाद हैं –
- “मुंबई आणि पुणे यांच्यातलं अंतर फक्त किलोमीटर मध्ये नाही, तर विचारांमध्ये सुद्धा आहे!”
- “प्रेम ही एका दिवसात होणारी गोष्ट नाही, पण कधी सुरू झालं कळतच नाही!”
- “कधी कधी एका दिवसात आपली संपूर्ण जीवन बदलू शकतं!”
संगीत की खासियत
फिल्म का संगीत भी इसकी एक मजबूत कड़ी है।
- “केव्हा तरी पहाटे” – यह रोमांटिक सॉन्ग बेहद लोकप्रिय हुआ और आज भी लोग इसे सुनना पसंद करते हैं।
- “राजसा राजसा” – यह गाना फिल्म की खूबसूरती को और भी बढ़ाता है।
फिल्म की सफलता और प्रभाव
- यह फिल्म मराठी सिनेमा की सुपरहिट फिल्मों में से एक रही।
- इस फिल्म की सफलता के बाद “मुंबई-पुणे-मुंबई 2” (2015) और “मुंबई-पुणे-मुंबई 3” (2018) भी बनाए गए।
- इस फिल्म ने मराठी रोमांटिक फिल्मों का ट्रेंड बदल दिया और साबित किया कि बिना किसी बड़े स्टार कास्ट और भारी-भरकम सेटअप के भी शानदार फिल्म बनाई जा सकती है।
निष्कर्ष
“मुंबई-पुणे-मुंबई” सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि दो अलग-अलग मानसिकताओं, विचारधाराओं और जीवनशैली के टकराव की कहानी है। यह फिल्म हमें सिखाती है कि प्यार अचानक नहीं होता, बल्कि यह धीरे-धीरे समझने, महसूस करने और अपनाने की प्रक्रिया है।
अगर आप एक हल्की-फुल्की, खूबसूरत और दिल को छू लेने वाली फिल्म देखना चाहते हैं, तो “मुंबई-पुणे-मुंबई” जरूर देखें।
“कारण कधी कधी एका दिवसात आपलं संपूर्ण आयुष्य बदलू शकतं!” 💕