जस्टिस बीआर गवई का जन्म 24 नवंबर, 1960 को अमरावती में हुआ। भूषण रामकृष्ण गवई का जन्म आर.एस. गवई और कमला के घर हुआ था। उनके पिता रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) गुट के नेता, पूर्व सांसद और राज्यपाल थे। उनके भाई राजेंद्र गवई भी पॉलिटिशियन हैं। जस्टिस गवई की पत्नी का नाम तेजस्विनी है।
गवई जस्टिस केजी बालाकृष्णन के बाद देश के दूसरे दलित हैं जो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद को संभालेंगे। गवई ने 16 मार्च, 1985 को बार जॉइन की थी। उन्होंने स्वर्गीय राजा एस भोंसले (पूर्व एडवोकेट जनरल और हाई कोर्ट के जज) के साथ 1987 तक साथ काम किया।
गवई ने 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस की। साल 1990 के बाद उन्होंने कॉन्स्टीट्यूशनल लॉ और एडमिनिस्ट्रेटिव लॉ की प्रैक्टिस की।
बीआर गवई नागपुर और अमरावती की नगर निगम और अमरावती यूनिवर्सिटी के स्थायी वकील थे। गवई, अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाई कोर्ट, नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किए गए।
17 जनवरी 2000 को उन्हें नागपुर बेंच के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया। इसके बाद वे 12 नवंबर, 2005 को बॉम्बे हाई कोर्ट के परमानेंट जज बन गए। 24 मई 2019 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया और उनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक है।
साल 2023 में जस्टिस गवई ने केंद्र सरकार के 2016 के डिमॉनिटाइजेशन के फैसले पर जजमेंट पेश किया। इस केस में पुष्टि की गई कि नोटबंदी संवैधानिक सीमाओं के अंदर की गई थी।
बतौर फाइव जज कॉन्स्टीट्यूशनल बेंच के सदस्य जस्टिस बीआर गवई ने 370 के अब्रोगेशन करने जैसे ऐतिहासिक जजमेंट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस जजमेंट के चलते जम्मू-कश्मीर का स्पेशल स्टेटस निरस्त करने और क्षेत्र के पुनर्गठन को सुगम बनाने में मदद हुई।
साल 2021 में जस्टिस गवई की बेटी करिश्मा गवई ने शादी के कुछ दिन बाद ही अपने ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज कराया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए उस समय की एसपी ने आईपीसी की धारा 498 A, 323, 294, 504, 506, 34 के तहत मुकदमा दर्ज किया था।