Emergency के 50 सालः क्यों बना भारत के इतिहास का सबसे काला दिन ?

इमरजेंसी के 50 साल  

25 जून 1975 की रात को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया। यह आपातकाल 21 महीने चला, 21 मार्च 1977 तक। इसे भारत के लोकतंत्र का सबसे काला दौर माना जाता है।

क्यों लगी थी इमरजेंसी?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द किया। कोर्ट ने 6 साल तक चुनाव लड़ने पर बैन लगाया। इसके बाद बढ़ते विरोध और कुर्सी छिनने के डर से 25 जून को इमरजेंसी घोषित की गई।

तानाशाही का दौर

सभी विपक्षी नेताओं को जेल में डाला गया। प्रेस की आज़ादी छीन ली गई सेंसरशिप लागू। आम लोगों पर भी निगरानी और अत्याचार बढ़ गए।

तुर्कमान गेट जख्म जो आज भी ताजे हैं

दिल्ली के तुर्कमान गेट में लोगों के घरों पर बुलडोज़र चलाया गया। पुलिस फायरिंग, लाठीचार्ज और आंसू गैस से लोग घायल हुए। परिवारों को जबरन बेघर कर नंद नगरी भेजा गया।

नसबंदी 

नसबंदी अभियान संजय गांधी की अगुवाई में चलाया गया। लोगों को जबरन पकड़कर ऑपरेशन किए गए। तुर्कमान गेट में सबसे ज्यादा विरोध और दर्दनाक घटनाएं हुईं।

घी, रेडियो और 250 रुपये में जिंदगी की कीमत?

नसबंदी करवाने पर दिया जाता था घी, रेडियो और 250 रुपये। लेकिन घरों के टूटने और सपनों के बिखरने की भरपाई नहीं हो सकी। रजिया बेगम जैसी लोग भी विरोध में घायल हो गईं।

50 साल बाद भी ताजा हैं वो जख्म

तुर्कमान गेट आज भी इमरजेंसी के जख्मों को याद करता है। बुजुर्गों की आंखों में आज भी दिखती है वो पीड़ा। यह घटना आज भी लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के लिए चेतावनी है।

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