हनुमद रामायण की रचना- लंका विजय के बाद श्रीराम की सेवा कर हनुमानजी हिमालय में तपस्या करने चले गए। वहां उन्होंने अपने नाखूनों से एक शिला पर श्रीराम की कथा लिखी, जिसे हनुमद रामायण कहा गया।
वाल्मीकि और हनुमानजी का मिलन- वहीं महर्षि वाल्मीकि ने भी कठिन तपस्या के बाद रामायण लिखी और भगवान शिव को समर्पित करने कैलाश पहुंचे। उन्होंने वहां हनुमानजी द्वारा पहले से लिखी हनुमद रामायण देखी और स्वयं की रचना को गौण मानकर निराश हो गए।
हनुमानजी का विनम्र भाव और समर्पण- वाल्मीकि की चिंता देखकर हनुमानजी ने उन्हें आश्वस्त किया और अपनी रामायण को समुद्र में श्रीराम को समर्पित करते हुए फेंक दिया, जिससे वाल्मीकि की रचना को मान्यता मिल सके।
कलियुग में वाल्मीकि का पुनर्जन्म- वाल्मीकि ने हनुमान जी से कहा कि उनकी महिमा के गुणगान के लिए वे कलियुग में फिर जन्म लेंगे। माना जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास ही वाल्मीकि का पुनर्जन्म हैं और उन्होंने हनुमान चालीसा और रामचरितमानस की रचना की।
समुद्र से बहकर आई हनुमद रामायण की पट्टालिका- कालीदास के समय एक पट्टालिका समुद्र से बहकर किनारे आई, जिसे एक सार्वजनिक स्थान पर रखा गया। कालीदास ने उसकी लिपि पढ़ी और वे समझ गए कि वह हनुमद रामायण का ही अंश था।